उत्तराखंड पंचायत चुनाव पर हाईकोर्ट का ‘प्रहार’: सरकार को लगा ‘तगड़ा’ झटका, टला ‘महापर्व’!
नैनीताल। उत्तराखंड में त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों पर नैनीताल हाईकोर्ट ने ऐसा ‘महाफैसला’ सुनाया है कि राज्य सरकार को ‘दिन में तारे’ दिख गए हैं। अदालत ने आरक्षण नियमावली में ‘घोर खामियों’ के चलते इन चुनावों पर तत्काल प्रभाव से ‘रोक’ लगा दी है। कोर्ट ने ‘दो टूक’ कह दिया है कि जब तक आरक्षण रोटेशन प्रक्रिया को ‘दूध का दूध पानी का पानी’ करते हुए पारदर्शी तरीके से लागू नहीं किया जाता, तब तक पंचायत चुनाव कराना ‘नामुमकिन’ है।
यह पूरा ‘बखेड़ा’ बागेश्वर निवासी गणेश दत्त कांडपाल सहित कई याचिकाकर्ताओं की याचिकाओं से शुरू हुआ। उन्होंने हाईकोर्ट में ‘धमाकेदार’ याचिकाएं दायर कर आरक्षण की प्रक्रिया पर ‘सीधे सवाल’ उठाए थे। उनका ‘करारा’ आरोप है कि राज्य सरकार ने 9 जून 2025 को पंचायत चुनावों के लिए एक नई आरक्षण नियमावली जारी की, और फिर ‘एक झटके’ में 11 जून को पुराने आरक्षण रोटेशन को ‘रद्दी की टोकरी’ में डालकर नया रोटेशन लागू कर दिया।
‘खेल’ यहीं नहीं रुका, इससे कई सीटें लगातार चौथी बार भी आरक्षित वर्ग के लिए ही तय हो गईं, जिससे ‘आम आदमी’ यानी सामान्य वर्ग के उम्मीदवार चुनाव लड़ने से ‘वंचित’ हो गए। याचिकाकर्ताओं का ‘गरजना’ था कि यह पूरी प्रक्रिया संविधान की ‘भावना’ और पूर्व में हाईकोर्ट द्वारा जारी ‘कड़े’ दिशा-निर्देशों के ‘विरुद्ध’ है।
कोर्ट की ‘लाल आँख’, सरकार को ‘फटकार’!
मुख्य न्यायाधीश नरेंद्र और न्यायमूर्ति आलोक महरा की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई के दौरान पाया कि राज्य सरकार ने न तो आरक्षण प्रक्रिया में ‘पारदर्शिता’ बरती, न ही कोर्ट के पूर्व आदेशों का ‘पालन’ किया। ‘हद तो तब हो गई’ जब इन सब के बावजूद सरकार ने चुनावी कार्यक्रम जारी कर दिया, जिससे ‘न्यायपालिका की अनदेखी’ हुई। कोर्ट ने सरकार को ‘जबरदस्त फटकार’ लगाते हुए कहा कि पहले स्थिति स्पष्ट करने को कहा गया था, लेकिन सरकार जवाब देने में ‘विफल’ रही। इसी ‘लापरवाही’ के चलते न्यायालय ने त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों की संपूर्ण प्रक्रिया पर ‘रोक’ लगा दी और राज्य सरकार से ‘विस्तृत जवाब’ मांगा है।


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