- उत्तराखंड के पर्वतीय समुदाय को जनजाति का दर्जा देने की मांग, सिटी मजिस्ट्रेट को सौंपा ज्ञापन
देहरादून। राष्ट्रपति के देहरादून आगमन पर राष्ट्रवादी रीजनल पार्टी के तमाम कार्यकर्ता उनको ज्ञापन देने के लिए विधानसभा की तरफ चले लेकिन उनको एलआईसी रीजनल ऑफिस के पास एसपी सिटी प्रमोद कुमार ने फोर्स के साथ कार्यकर्ताओं को आगे बढ़ने से रोक दिया।
इस पर राष्ट्रवादी रीजनल पार्टी के कार्यकर्ता वहीं पर नारेबाजी करने लगे। राष्ट्रवादी रीजनल पार्टी के कार्यकर्ता उत्तराखंड के पर्वतीय समुदाय को शेड्यूल 5 में जनजाति का दर्जा देने की मांग करने वाले नारे लगाए लगाने लगे।
इसके बाद सिटी मजिस्ट्रेट प्रत्यूष कुमार पहुंचे तथा पार्टी पदाधिकारी से ज्ञापन लेकर उन्हें यह मांग पत्र राष्ट्रपति तक पहुंचाने का आश्वासन दिया।
इस अवसर पर राष्ट्रवादी रीजनल पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष शिवप्रसाद से मां ने कहा कि आजादी के बाद से अब तक लगभग ढाई सौ जातियों को जनजाति का दर्जा दिया जा चुका है लेकिन उत्तराखंड से 1974 में ट्राइबल का स्टेटस वापस ले लिया गया था। उन्होंने इसे दोबारा से बहाल करने की मांग की।
पार्टी की प्रदेश अध्यक्ष सुलोचना ईष्टवाल ने कहा कि राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू खुद भी संथाल जनजाति से हैं और पार्टी को उम्मीद है कि वह उत्तराखंड की इस जायज मांग को संवेदनशीलता से लेंगी।
महानगर अध्यक्ष नवीन पंत ने कहा कि हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा जम्मू–कश्मीर के पहाड़ी, पद्दारी और गड्डा ब्राह्मण समुदायों को जनजातीय दर्जा प्रदान करने के निर्णय से यह विषय और अधिक प्रासंगिक एवं न्यायसंगत हो गया है।
उत्तराखंड आंदोलनकारी प्रकोष्ठ की अध्यक्ष सुशीला पटवाल ने कहा कि भारत सरकार द्वारा वर्ष 1965 में गठित “लोकुर समिति” ने अनुसूचित जनजातियों की पहचान हेतु पाँच प्रमुख मानदंड निर्धारित किए थे। गढ़वाली और कुमाऊँनी समुदाय उन सभी मापदंडों को पूर्ण रूप से पूरा करते हैं।
ये रहे शामिल
इस मौके पर शिव प्रसाद सेमवाल, सुलोचना ईष्टवाल, शशी रावत, मीना थपलियाल, बसंती गोस्वामी, शुशीला पटवाल, मंजू रावत, रेनू नवानी, सुनीता, नवीन पंत महानगर अध्यक्ष, भगवती प्रसाद नौटियाल सैनिक प्रकोष्ठ अध्यक्ष, भगवती गोस्वामी जिला अध्यक्ष सैनिक प्रकोष्ठ, दयाराम मनौड़ी, जिला महामंत्री योगेश ईष्टवाल, केंद्रीय कार्यालय प्रभारी, सुभाष नौटियाल संगठन सचिव, महावीर सिंह, प्रीतम नेगी, सोभित भद्री आदि तमाम कार्यकर्ता शामिल थे।
ये हैं प्रमुख मांगें
1. उत्तराखंड के समस्त पर्वतीय मूल निवासी समुदायों को अनुसूचित जनजाति (Scheduled Tribe) का संवैधानिक दर्जा प्रदान किया जाए।
2. उत्तराखंड के संपूर्ण पर्वतीय क्षेत्र को संविधान की पांचवीं अनुसूची के अंतर्गत घोषित किया जाए।
लेटैस्ट न्यूज़ अपडेट पाने हेतु -
👉 इंफो उत्तराखंड के फेसबुक पेज से जुड़ें




