- उत्तराखंड की बोलियां और नाट्य कला है अमूल्य धरोहर
देहरादून। गढ़वाली लेखक और अभिनेता मदन डुकलान ने कहा कि उत्तराखंड की बोलियाँ और नाट्य कला वो अमूल्य धरोहर हैं, जो उसकी सांस्कृतिक परंपराओं और लोकजीवन की सजीव गूँज बनकर हर पीढ़ी तक पहुँचती हैं।
वह आज ग्राफिक एरा डीम्ड यूनिवर्सिटी में उत्तराखंड की बोलियों और नाट्य कला विषय पर कार्यशाला को संबोधित कर रहे थे। मदन डुकलान ने छात्र छात्राओं को उत्तराखंड की प्रमुख बोलियों — गढ़वाली, कुमाऊँनी और जौनसारी — के इतिहास, उत्पत्ति और विकास से अवगत कराया। अपने समृद्ध अनुभवों को साझा करते हुए उन्होंने उन साहित्यकारों और रचनाकारों के योगदान को भी उजागर किया, जिन्होंने इन बोलियों में साहित्य और कला की परंपरा को निरंतर आगे बढ़ाया है।
डुकलान ने उत्तराखंड की विभिन्न नाट्य विधाओं और उनके वर्तमान स्वरूप पर रोचक उदाहरणों के साथ प्रकाश डाला, और छात्र छात्राओं को अपनी सांस्कृतिक धरोहर पर गर्व करने तथा उसे समझने और संजोने के लिए प्रेरित किया।
कार्यशाला की शुरुआत पारंपरिक गीत “दैणा हुइयाँ खोलि का गणेशा हे” से हुई, जिसने श्रोताओं को तुरंत ही उत्तराखंड की लोकधुनों और सांस्कृतिक परिवेश का। एहसास कराया। इसके बाद बी.बी.ए. के श्रेयांश नवानी, वरदान खंडूरी, विकास जोशी और आदित्य जोशी ने गढ़वाली लोकगीतों की मधुर और मनमोहक प्रस्तुति दी, जिसमें लोकप्रिय लोकगीत “बेडू पाको बारा मासा” भी शामिल था। उनकी प्रस्तुति ने उत्तराखंड की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक आत्मा को जीवंत कर, हर श्रोता के दिल को छू लिया।
कार्यशाला का आयोजन ग्राफिक एरा डीम्ड यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर रीजनल स्ट्डीज और मैनेजमेंट डिपार्टमेंट ने संयुक्त रूप से किया। कार्यशाला में स्कूल ऑफ़ मैनेजमेंट के एचओडी डा. नवनीत रावत, सेंटर फॉर रीजनल स्टडीज के कोआर्डिनेटर डा. गिरीश लखेड़ा , अभिनेता और ग्राफिक एरा हिल यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर नवनीत गैरोला के साथ डा. अरविंद मोहन, डा. रत्नाकर मिश्रा, डा. नीरज शर्मा,डा. संजय तनेजा, डा. पवन कुमार अन्य शिक्षक शिक्षिकाएं और छात्र-छात्राएं शामिल रहे।