नैनीताल/इन्फो उत्तराखंड
शक्तिमान घोड़े पर हमले के मामले में उत्तराखंड हाईकोर्ट ने गृह सचिव को आदेश दिया है, और कहा है कि 4 हफ्तों के भीतर याचिकाकर्ता के प्रत्यावेदन पर निर्णय लें, कि कोर्ट ने याचिकाकर्ता को 1 हफ्ते के भीतर वो अपना प्रत्यावेदन गृह सचिव को दें। ताकि उसके बाद ही उस पर निर्णय लिया जाए।
गौरतलब है कि शक्तिमान घोड़े को लेकर राजनीति तेज होने के बाद हरीश रावत की सरकार में शक्तिमान घोड़े की मौत के मामले में मुकदमा दर्ज हुआ था। जो कि बीजेपी सरकार आने के दौरान आरोपी बरी हो गया था। हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता के आवेदन को 4 सप्ताह के भीतर निपटारे करने के निर्देश दिए हैं। याचिकाकर्ता ने इस मामले में देहरादून के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की कोर्ट से बरी पांच आरोपियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने और इस केस से संबंधित सभी पत्रावालिया दिलाने का अनुरोध किया था।
न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की एकल पीठ के समक्ष मामले की सुनवाई हाईकोर्ट में याचिका दायर कर कहा था, की पुलिस ने रिस्पना पर प्रदर्शनकारियों को रोक लिया था। लेकिन झड़प के दौरान पुलिस के शक्तिमान घोड़े की पर लाठियां पड़ने से उसकी टांग टूट गई थी। जिसके बाद घोड़े के पैर काट कर उस पर कृत्रिम पैर लगाया गया था।
लेकिन उसकी जान नहीं बचाई जा सकी। पुलिस ने बलुआ करने के आरोप में गणेश जोशी, प्रमोद बोरा, जोगिंदर सिंह पुंडीर, अभिषेक गौर और राहुल रावत के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया। और पुलिस ने इन पांचों आरोपी को गिरफ्तार भी करके जेल भेज दिया था।
और बाद में सरकार ने केस वापस लेने के लिए कोर्ट में दो बार प्रार्थना पत्र भी दिया। लेकिन कोर्ट ने केस वापस लेने की अनुमति नहीं दी। लेकिन कुछ समय बाद आरोपियों को जमानत मिल गई। जिसके बाद 23 सितंबर 2021 को सीजेएम कोर्ट देहरादून में इन पांचों आरोपियों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया गया था।
जबकि इनके खिलाफ पुलिस के पास कईं सबूत व वीडियोग्राफी भी है। इसलिए उनके खिलाफ मुकदमा दर्ज करने के लिए उन्हें सीजेएम कोर्ट देहरादून में केस की समस्त पत्रावालिया दिलाई जाए। हाईकोर्ट में याचिका दायर करने से पहले उन्हें पत्रावाली देने के लिए सीजेएम कोर्ट में प्रार्थना पत्र दिया था, लेकिन उन्हें यह कहकर मना कर दिया गया कि वे इस केस में पक्षकार नहीं है।
कोर्ट ने दिया 4 सप्ताह का समय
हाईकोर्ट के वकील शक्ति सिंह ने कहा कि इस मामले में सचिव गृह को प्रत्यावेदन का निस्तारण करना होगा। साथ ही अगर 4 हफ्तों में ऐसा नहीं किया तो इस पर अवमानना का केस किया जा सकता है। अगर उनके खिलाफ कोई आदेश भी होता है तो वो वापस कोर्ट आ सकते है।
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