- अवैध निर्माणों पर एमडीडीए की दोहरी नीति, छोटे पर सख्ती, बड़ो पर नरमी!
- एमडीडीए की कार्यप्रणाली पर सवाल : सुनवाई या समय बिताने की रणनीति?
- एमडीडीए में सांठगांठ का खेल!, सुनवाई के नाम पर सालों से लटके केस
देहरादून। मसूरी देहरादून विकास प्राधिकरण (एमडीडीए) एक ओर जहाँ शहरभर में अवैध प्लॉटिंग और निर्माण पर सख्त कार्रवाई करने के बड़े-बड़े दावे करता है, वहीं दूसरी ओर जमीनी स्तर पर तस्वीर कुछ और ही नजर आ रही है। प्राधिकरण की ओर से यह कहा जाता है कि किसी भी अवैध निर्माण को बख्शा नहीं जा रहा है- या तो अवैध प्लॉटिंगों को ध्वस्तीकरण किया जा रहा है या फिर अवैध निर्माण कार्यां को सील किया जा रहा है।

लेकिन हकीकत यह है कि कार्रवाई का यह पैमाना सबके लिए समान नहीं है। कई मामलों में प्राधिकरण के अधिकारी और कर्मचारी अवैध निर्माणकर्ता को देखकर कार्रवाई का फैसला करते हैं। शहर भर में ऐसे कई उदाहरण हैं जहाँ किसी अवैध निर्माण को कुछ ही दिनों में सील कर दिया गया, जबकि कई अवैध निर्माण वर्षों तक “सुनवाई में विचाराधीन” के नाम पर लंबित पड़े हैं।

इसी तरह का एक ताजा उदाहरण इंदिरा नगर कॉलोनी, न्यू फॉरेस्ट, देहरादून में देखने को मिल रहा है। यहाँ “रॉयल इन पैलेस” नाम से एक होटल और बरातघर संचालित किया जा रहा है। क्षेत्रवासियों ने इस अवैध निर्माण की शिकायत मार्च 2024 में एमडीडीए से की थी। शिकायत पर कार्रवाई करते हुए प्राधिकरण ने वाद संख्या सी-0003/आ.वि./24-25 दर्ज कर बरातघर/होटल का चालान तो कर दिया, परंतु उसके बाद से मामला सिर्फ “सुनवाई में विचाराधीन” के दायरे में अटका हुआ है।

एक वर्ष से अधिक समय बीत जाने के बावजूद न तो सीलिंग की कार्रवाई हुई, न ही ध्वस्तीकरण की। सूत्रो की माने तो प्राधिकरण के अधिकारी केवल उन्हीं मामलों में त्वरित कार्रवाई करते हैं, जहाँ उनकी “सांठगांठ” नहीं होती। जिनसे तालमेल हो जाता है, उनके खिलाफ शिकायतें महीनों और सालों तक लंबित रहती हैं।

प्राधिकरण पर आरोप है कि यह चयनात्मक कार्रवाई भ्रष्टाचार और मिलीभगत की ओर इशारा करती है।
“अगर किसी आम नागरिक का निर्माण थोड़ा भी नियमविरुद्ध हो, तो दो दिन में नोटिस और सीलिंग हो जाती है। लेकिन जहाँ पर अधिकारियों की पहुँच या हित जुड़ा हो, वहाँ सालों तक नोटिस और सुनवाई का खेल चलता रहता है।’’ प्राधिकरण के इस दोहरे रवैये ने न केवल जनता के विश्वास को झकझोरा है, बल्कि यह सवाल भी खड़ा किया है कि क्या एमडीडीए की कार्रवाई कानून के अनुसार हो रही है या ‘चयनित’ आधार पर?

