- देहरादून के मजाडा गांव में छिन गया लोगों का आशियाना, लोग घर छोड़ने पर मजबूर
रिपोर्ट/ नीरज पाल
देहरादून। कभी अपनी खूबसूरत वादियों के लिए मशहूर, सहस्रधारा से करीब आठ किलोमीटर दूर स्थित मजाडा गांव अब एक खौफनाक मंजर में तब्दील हो चुका है। बीते सोमवार रात को बादल फटने के बाद यहां चारों ओर तबाही का मंजर पसरा है। गांव में हर तरफ टूटे और मलबे में दबे घर, बड़े-बड़े पत्थर और बोल्डर बिखरे पड़े हैं। इस भयावह दृश्य ने गांव वालों के रोंगटे खड़े कर दिए हैं।
आपदा के बाद से गांव में बारिश और बादलों की हर गड़गड़ाहट लोगों को डरा रही है। दहशत का आलम यह है कि कोई भी परिवार अब गांव में रुकने का जोखिम नहीं लेना चाहता।
पहाड़ों में आई दरार से बढ़ा खतरा
आपदा के बाद मजाडा गांव के पहाड़ों में भी बड़ी-बड़ी दरारें आ गई हैं, जिसने गांववालों के डर को और बढ़ा दिया है। लोगों का कहना है कि इन दरारों को देखकर ही डर लगता है। उन्हें इस बात का भी डर है कि दरार के कारण बचा हुआ गांव भी ढह सकता है।
गांव की रहने वाली सुमित्रा रावत ने बताया, “मजाडा में रहना अब सुरक्षित नहीं है। मैंने आज से पहले कभी इतनी बड़ी आपदा नहीं देखी। हमारा रोजगार तक छूट गया है और आपदा ने सब कुछ छीन लिया है।” इसी तरह, कमला देवी कहती हैं, “अब गांव के पहाड़ में मोटी दरार आ गई है। कभी भी हादसा हो सकता है। सरकार को हमें किसी दूसरी जगह बसाना चाहिए।”
उजड़े आशियाने, खाली हो रहा गांव
गांव के अधिकांश परिवार सुरक्षित स्थानों पर चले गए हैं। जो कुछ लोग बचे हैं, वे हर सुबह आकर अपने पशुओं को चारा-पानी देकर लौट जाते हैं। गांव के रास्ते भी पूरी तरह से बह चुके हैं और आशियाने खंडहर में बदल गए हैं।
स्वास्ती देवी ने अपनी पीड़ा साझा करते हुए कहा, “आपदा ने हमसे हमारा घर तक छीन लिया है। मैंने ऐसा मंजर कभी नहीं देखा। मैंने अपने परिवार के अन्य सदस्यों को रिश्तेदारों के यहां भेज दिया है, क्योंकि यहां कुछ भी सुरक्षित नहीं है।” आरती ने बताया कि 2011 में भी इतनी तबाही नहीं हुई थी, लेकिन इस बार पूरा गांव उजड़ चुका है।
गांव में रहने वाले 45 परिवारों में से सात से दस घर पूरी तरह से ढह गए हैं। अब गांव वाले सरकार से यह मांग कर रहे हैं कि पूरे गांव को किसी सुरक्षित जगह पर बसाया जाए, ताकि उनकी आने वाली पीढ़ियां सुरक्षित रह सकें।
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