उत्तराखंड

बड़ी खबर : एक साल से विकास का पहिया जाम, पूरे साल नहीं हुआ एक भी काम!

देहरादून/ इंफो उत्तराखंड 

भाजपा सरकार अपनी दूसरी पारी का जश्न मना रही है और राज्य कि जनता महंगाई की मार से जूझ रही है। धामी सरकार का अपनी दूसरी पारी का पहला साल उत्तराखंड के लिए पूरी तरह से निराशाजनक रहा। 2017 से अब तक सरकार ने कर्ज लेने में उपलब्धि हासिल करते हुए राज्य पर कर्ज का बोझ 77 हजार करोड़ तक पहुंचा दिया है।

प्रति व्यक्ति आय में रिकार्ड वृद्धि का दावा करने वाली और देश में छठी अर्थव्यवस्था का दावा करने वाली धामी सरकार के इसी कार्यकाल में बागेश्वर में एक माँ जब भूख न सहन कर पाने के कारण अपने 3 बचों के साथ आत्महत्या तथा चौखुटिया ब्लॉक के खुजरणी गाँव में एक बालिका की भुखमरी से मौत की घटनाएं सरकार के गाल पर तमाचा है।

राज्य की नौकरशाही के कब्जे में है सरकार

धामी सरकार के ऐसे ही दावों के बीच uksssc, ukpsc द्वारा आयोजित भर्ती परीक्षाओं में पेपर लीक, नकल एवं परीक्षाओं का निरस्त होने जैसी घटनाओं से सरकार की कार्यशैली के साथ नौकरशाही पर कमजोर पकड़ साफ साफ दिखाई दे रही है।

हालात यह है कि राज्य की नौकरशाही पर सरकार का नियंत्रण होने के बजाय सरकार पर नौकरशाही का नियंत्रण है। यही कारण है कि 1994 के रामपुर तिराहे की सरकारी हिंसा के बाद इसी 9 फरवरी को राजपुर रोड पर सरकारी हिंसा का तांडव दिखाई दिया।

पुलिस ने जिस बर्बरता से राज्य के बेकसूर, प्रतिभावन नौजवानों पर लाठियां बरसाई, जिस तरह दो वरिष्ठ अधिकारी कैबिनेट की बैठक में मुख्यमंत्री के सामने आपस में लड़ते हुए दिखाई दिए यह सब इस बात के प्रमाण हैं।

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भ्रष्टाचार के दल दल में डूबी धामी सरकार

कैग द्वारा हाल ही में जारी की गई एक रिपोर्ट के अनुसार भाजपा की यह सरकार आकंठ भ्रष्टाचार के दलदल में डूब कर लगातार राज्य की जनता के हितों पर चोट कर रही है। जिस तरह देहरादून और हरिद्वार में सरकारी दवाई के जखीरे जंगल में पड़े मिले, जिस तरह से छात्रों को निशुल्क बांटी जाने वाली किताबें कूड़े के ढेर में मिली, एक बाइक कंपनी द्वरा लेखपालों के लिए दी गई 300 से अधिक मोटर बाइक खड़े खड़े सड़ रही है, सहकारिता भर्ती की गड़बड़ी को छुपा दिया गया है, सरकारी वाहनों का दुरुपयोग खनन सामग्री को धोने के लिए किया जा रहा है और उनके खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं होने जैसी कई अन्य घटनाएं राज्य सरकार के भ्रष्टाचार का जीताजागता उदाहरण है।

अपनों पर रहम, औरों पर करम

भर्ती परीक्षाओं में भाजपा से जुड़े हाकाम सिंह, चंदन सिंह मनराल, आर बी ऍस् रावत, धारीवाल बताते हैं कि नकल का ये कारोबार किसी बड़े सरगना की सरपरस्ती में चलता रहा है जिसको सरकार बचा रही है। ऐसे ही विधानसभा में मुख्यमंत्री जी द्वारा 72 लोगों को विचलन के अधिकार का प्रयोग करते हुए नौकरी पर रखने की स्वीकृति देना और फिर निकाल बाहर करना तथा 2016 से पहले की अवैध भर्तियों पर मौन साधना सरकार की पारदर्शी कार्यप्रणाली पर प्रश्नचिन्ह है।

राज्य की कानूनव्यवस्था पर भी है सवाल।

राज्य में कानून व्यवस्था पर लगातार सवाल उठ रहे है। अल्मोड़ा जिले के भिकियासेन में दलित युवक जगदीश की हत्या, चमोली जिले के हेलंग घाटी में घास काटने के लिए गई हुई महिलाओं पर गलत और शर्मनाक धाराओं में मुकदमा दर्ज करना और उनको बदनाम करना, अंकिता हत्याकांड के मुख्य कारक बीआईपी का नाम अब तक उजागर ना होना राज्य की कानून व्यवस्था पर बड़ा सवाल खाद्य कर रही है।

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जोशीमठ आपदा प्रवंधान में भी सरकार फेल

इस सरकार की उपलब्धि है जोशीमठ के आपदाग्रस्त परिवारों के साथ खड़े होने के बजाय पूरी ताकत से एनटीपीसी के बचाव में खड़ा होना। जब हर दिन जोशीमढ़ में नई दरारें आ रही थी, पुरानी दरारें चौड़ी होकर दर रही थी ऐसे समय पर मुख्यमंत्री का यह कहना कि जोशीमठ की आपदा मानवजनित न होकर दैवीय आपदा है तथा 70%जोशीमठ सुरक्षित है ने जोशीमठ के आपदा प्रभावित परिवारों के घावों पर नामक छिड़कने जैसा था।

जनता पर महंगाई की मार, ऊपर से सस्ती शराब

सरकार ने इस एक साल में बिजली के दाम बढ़ाए, पानी के दाम बढ़ाए, डीजल के, पेट्रोल के, रसोई गैस सिलेंडर के, खाद्य सामग्री के दाम बढ़ाकर गरीब के जलते चूल्हे पर पानी डालकर भूखा सोने को मजबूर किया। इस एक साल में सरकार ने नई आबकारी नीति में शराब के दाम घटने का फैसला करके युवा पीढ़ी को नशे का शिकार बनाने का अपराध किया है।

स्कूलों की दशा सुधारने के बजाय बंद करने पर तुली सरकार 

बच्चों को अच्छी शिक्षा देने के बजाय यह सरकार राज्य भर में कम छात्र संख्या के नाम पर 3200 स्कूलों, दर्जनों आईटीआई, पॉलीटेक्निक बंद करने का फैसला ले चुकी है। गेस्ट टीचर के निकाले जाने से अनेक स्कूलों में ताले नहीं खुल रहे हैं। शिक्षकों की कमी से पढ़ाई बाधित हो रही है।

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स्वास्थ्य सेवाओं का हाल बहुत बुरा

राज्य में स्वास्थ्य सेवाएं पूरी तरह से विफल साबित हो रही हैं। पर्वतीय जिलों में स्थापित प्रथमिकव सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के अलावा अधिकांश अनेक जिला अस्पताल डाक्टरों की कमी से जूझ रहे है।

कहीं डाक्टर नहीं तो कहीं तकनीशियन नहीं तो कहीं जांच के लिए जरूरी मशीनें नहीं हैं जिसका परिणाम है कि ये सारे अस्पताल रेफर सेंटर बन गए हैं। यही कारण है कि गर्भवती महिलाओं को खेतों, सड़कों और ऐम्बुलेंस पर प्रसव करने पद रहे हैं।

जानकार आचार्य होता है कि मुख्यमंत्री जी के चुनाव क्षेत्र चंपावत में इलाज के अभाव में मधुमखी के काटने से एक 11 साल के बालक की मौत हो जाती है। स्कूल की चैट गिरने से चोटिल छात्र मार जाता है, पिथौरागाढ़ के अस्पताल के बरामदे में पिता की गोद में बीमार बीटा दम तोड़ देता है, ऐसे और भी बहुत उदाहरण स्वास्थ्य सेवाओं की हकीकत बात रहे हैं।

राज्य का किसान परेशान, बेरोजगार सड़कों पर, आशा, अंगनबाड़ी, गेस्ट टीचर, उपनल कर्मी अक्सर सड़कों पर प्रदर्शन कर रहे हैं और सरकार जश्न मना रही है। इतने बदतर हालत के बाद अपनी नाकामियों का जश्न मनाने का साहस भज जैसी गैरजिम्मेदार और तानाशाह सरकार ही कर सकती है।

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