- ज़िंदगी के जश्न को बनाया जल संरक्षण का हथियार!
- नन्हे हाथ थाम रहे पुरखों की धरोहर
रिपोर्ट/नीरज पाल
देहरादून। देवभूमि उत्तराखंड, जहाँ गंगा-यमुना जैसी जीवनदायिनी नदियाँ निकलती हैं, वहीं गर्मियों में कई शहर पानी की एक-एक बूँद को तरसते हैं। लेकिन इस गंभीर संकट के बीच, एक सच्चा पर्यावरण योद्धा पिछले कई दशकों से अकेले ही जल स्रोतों को बचाने की मशाल थामे हुए है। नाम है द्वारिका प्रसाद सेमवाल, जिनकी ‘जाड़ी संस्था’ और “कल के लिए जल” मुहिम आज हज़ारों लोगों के लिए प्रेरणा बन चुकी है!
सेमवाल की लड़ाई सिर्फ़ नारों और भाषणों तक सीमित नहीं है। उन्होंने इस मुहिम को लोगों के दिलों से जोड़ने का एक अनोखा और ज़बरदस्त तरीका निकाला है। सोचिए, आप अपना जन्मदिन मना रहे हैं या किसी प्रियजन की याद में कुछ करना चाहते हैं, और सेमवाल आपको प्रेरित करते हैं एक पुराने तालाब को नया जीवन देने या एक नया जल कुंड बनाने के लिए! जी हाँ, उनकी संस्था ने इसी भावनात्मक जुड़ाव के ज़रिए पिछले कई दशकों में लाखों जलकुंड और तालाबों को संजीवनी दी है। वे कहते हैं, “हम इस साल को ‘जल वर्ष’ के रूप में मना रहे हैं। हमारी कोशिश है कि लोग अपने खास पलों को प्रकृति को समर्पित करें।”
सेमवाल सिर्फ़ काम नहीं करते, बल्कि सिस्टम पर भी सवाल उठाते हैं। वे बताते हैं कि अकेले देहरादून में सरकारी रिकॉर्ड में 49 तालाब हैं, जिनमें से 10 की हालत बेहद ख़राब है। उनकी माँग सीधी और स्पष्ट है – तालाबों और धाराओं को सीमेंट के जंगल से मुक्त किया जाए, कुओं पर से अवैध कब्ज़े हटें। उन्होंने फरवरी में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से मिलकर देहरादून के तालाबों और जोहड़ों को अतिक्रमण व प्रदूषण से बचाने की पुरज़ोर गुहार लगाई थी।
द्वारिका प्रसाद सेमवाल की दशकों की मेहनत और आवाज़ आख़िरकार रंग लाई। मुख्यमंत्री धामी ने नौलों, धारों, तालाबों और कुओं को पुनर्जीवित करने के आदेश जारी कर दिए हैं। सेमवाल सरकार के इस कदम की सराहना करते हैं, लेकिन साथ ही चेताते भी हैं, “यह सिर्फ़ शुरुआत है। असली लड़ाई आम जनता की भागीदारी से ही जीती जाएगी। जनता जागेगी, तभी जल बचेगा!”
इस महाअभियान की सबसे खूबसूरत तस्वीर है स्कूली बच्चों का जुड़ाव। सेमवाल की “कल के लिए जल” मुहिम के तहत, स्कूलों के बच्चे जल स्रोतों को गोद ले रहे हैं और उनकी देखभाल का संकल्प ले रहे हैं। ये नन्हे पर्यावरण प्रहरी न सिर्फ़ पानी बचा रहे हैं, बल्कि समाज में जागरूकता की अलख भी जगा रहे हैं।
द्वारिका प्रसाद सेमवाल की यह तपस्या और उनकी अनोखी मुहिम वाकई तगड़ी और ज़बरदस्त है, जो देवभूमि में सूखते जल स्रोतों के लिए उम्मीद की एक नई किरण बनकर उभरी है!
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