स्वाभिमान महारैली: उत्तराखंडियों ने भू कानून और मूल निवास अधिकारों के लिए दिखाई एकजुटता
ऋषिकेश में “मूल निवास भू कानून समन्वय संघर्ष समिति” द्वारा आयोजित स्वाभिमान महारैली में हजारों उत्तराखंडियों ने हिस्सा लिया। इस रैली का मुख्य उद्देश्य राज्य के निवासियों के अधिकारों की रक्षा और भू कानून में संशोधन की मांग को लेकर एकजुटता प्रदर्शित करना था। उत्तराखंड के लोगों ने जोरदार नारेबाजी करते हुए सरकार से सशक्त भू कानून और मूल निवास अधिकारों की स्थापना की मांग की।
जल, जंगल, जमीन और नौकरियों पर मूल निवासियों का अधिकार
महारैली के मुख्य वक्ता उत्तराखंड क्रांति सेना के प्रदेश अध्यक्ष ललित श्रीवास्तव ने इंफो उत्तराखंड से बातचीत में कहा कि जल, जंगल, जमीन और नौकरियों पर पहला अधिकार उत्तराखंड के मूल निवासियों का होना चाहिए। उन्होंने कहा कि इस अधिकार के लिए आज पूरे राज्य के लोग एकजुट हो गए हैं और इस संघर्ष में उनका पूरा समर्थन है। श्रीवास्तव के अनुसार, यह आंदोलन किसी के खिलाफ नहीं, बल्कि राज्य के निवासियों के अधिकारों की रक्षा के लिए है।
अफवाहों पर श्रीवास्तव का खंडन
श्रीवास्तव ने “इंफो उत्तराखंड न्यूज़” के माध्यम से कहा कि भू कानून और मूल निवास के मुद्दों पर फैल रही गलतफहमियों को भी दूर किया। उन्होंने स्पष्ट किया कि कुछ लोग यह अफवाह फैला रहे हैं कि इन कानूनों के लागू होने से बाहरी लोगों के खिलाफ हिंसा होगी या उन्हें राज्य से निकाला जाएगा। श्रीवास्तव ने इसे पूरी तरह से झूठ बताया और कहा कि ये अफवाहें केवल आंदोलन को कमजोर करने के प्रयास हैं।
गरीबों और मध्यम वर्ग का कोई नुकसान नहीं
ललित श्रीवास्तव ने यह भी कहा कि भू कानून और मूल निवास की व्यवस्था से केवल बड़े व्यापारी और संपन्न वर्ग प्रभावित होंगे, जबकि गरीब और मध्यम वर्ग के लोगों को इससे कोई असुविधा नहीं होगी। उन्होंने साफ किया कि जिनके पास एक बिस्सा या 100-150 गज में बना घर है, उन्हें इस कानून से कोई नुकसान नहीं होगा।
सरकार से ठोस कदम उठाने की मांग
महारैली में शामिल लोगों ने उत्तराखंड सरकार से मांग की कि वह जल्द से जल्द एक सशक्त भू कानून और मूल निवास की व्यवस्था लागू करे, जिससे हर उत्तराखंडी को उसका हक मिल सके। रैली के दौरान जनता ने जोरदार नारेबाजी करते हुए अपने अधिकारों के लिए एकजुट होकर संघर्ष करने का संकल्प लिया।
उत्तराखंडियों के अधिकारों की रक्षा का संकल्प
स्वाभिमान महारैली ने राज्य के निवासियों को यह संदेश दिया कि उनके प्राकृतिक संसाधनों पर पहला अधिकार उन्हीं का होना चाहिए, और इसे सुनिश्चित करने के लिए सरकार को ठोस कदम उठाने चाहिए।
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