उत्तराखंड के उच्च शिक्षा विभाग की नीतियों पर प्रश्न चिन्ह: सुविधाभोगी प्राध्यापकों का महाविद्यालयों में बढ़ता प्रभाव
देहरादून: उत्तराखंड सरकार के उच्च शिक्षा विभाग की नीतियों पर गंभीर सवाल उठने लगे हैं। राजकीय महाविद्यालयों में लोक सेवा आयोग से चयनित प्राध्यापकों को नियुक्ति पत्र जारी किए जा रहे हैं, लेकिन इनमें से कई प्राध्यापक सुविधाओं के लिए अधिकतर देहरादून में अटैचमेंट करवा रहे हैं। विशेष रूप से राजकीय महाविद्यालय देवप्रयाग, जो एक दुर्गम क्षेत्र है, इस समय एक ‘हॉट सीट’ बना हुआ है।
उत्तराखंड का उच्च शिक्षा विभाग पर्वतीय और दुर्गम क्षेत्रों में शिक्षा के स्तर में सुधार के बड़े-बड़े दावे करता है, लेकिन यह देखा जा रहा है कि प्राध्यापक केवल कुछ दिन कक्षाओं में उपस्थित होकर अन्य कार्यक्रमों जैसे ओरियंटेशन कोर्स, रिफ्रेशर कोर्स, सेमिनार, कार्यशाला और बाल्य देखभाल अवकाश में रहते हैं। इससे छात्रों का शिक्षण कार्य गंभीर रूप से प्रभावित हो रहा है।
गौरतलब है कि राजकीय महाविद्यालयों में अधिकांश छात्र निर्धन परिवारों से आते हैं, और ऐसे प्राध्यापकों की उपस्थिति से उनकी शिक्षा में व्यवधान उत्पन्न हो रहा है। राज्य सरकार यदि सुविधाभोगी प्राध्यापकों को इन महाविद्यालयों में भेजकर उच्च शिक्षा के स्तर को सुधारने का प्रयास कर रही है, तो यह एक चिंताजनक स्थिति है।
छात्रों ने स्पष्ट किया है कि यदि ये प्राध्यापक महाविद्यालय में केवल कुछ दिन के लिए आकर कक्षाएं पढ़ाते हैं, तो छात्र इनकी कक्षाओं का बहिष्कार करेंगे। इसके विरोध में छात्र एक व्यापक आंदोलन का भी आह्वान कर सकते हैं। इस स्थिति में शिक्षा को केवल रोजगार का माध्यम मानने वाले प्राध्यापकों के खिलाफ भी एक ठोस अभियान चलाने की आवश्यकता है।
इस पूरे मामले पर उच्च शिक्षा विभाग को पुनर्विचार करने की आवश्यकता है, ताकि छात्रों के हितों की रक्षा की जा सके और उत्तराखंड में उच्च शिक्षा का स्तर वास्तव में सुधारा जा सके।
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