भाजपा सरकार में महिलाओं के खिलाफ अपराधों में उछाल, वादे धरातल पर असफल
अंकिता भंडारी हत्याकांड: दो साल बाद भी न्याय की प्रतीक्षा, वीआईपी नाम पर सस्पेंस बरकरार : गरिमा दसौनी
अपराधों पर लीपापोती और राजनीतिक संरक्षण: महिला सुरक्षा के मुद्दों पर भाजपा पर सवाल
देहरादून।
भाजपा सरकार ने अपने कार्यकाल में महिलाओं के लिए बड़े-बड़े वादे किए थे। ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ जैसे नारों के साथ महिला सशक्तिकरण, महिला आरक्षण, और महिलाओं को समान अधिकार देने की बात कही गई थी। लेकिन धरातल पर स्थितियाँ बिल्कुल विपरीत दिखाई दे रही हैं। महिलाओं के खिलाफ अपराधों में बेतहाशा वृद्धि हुई है, और इनमें से 90% अपराध मासूम बच्चियों के खिलाफ हो रहे हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि कई मामलों में सत्ताधारी दल के नेताओं और कार्यकर्ताओं की संलिप्तता पाई गई है।
अपराधों के बाद की लीपापोती, अपराधियों को बचाने और उन्हें संरक्षण देने की घटनाएँ भाजपा शासन के दौरान आम होती जा रही हैं। विशेष रूप से अंकिता भंडारी हत्याकांड में, जो दो साल से लंबित है, न्याय की उम्मीदें धूमिल होती जा रही हैं। न तो फास्ट ट्रैक कोर्ट में मामला तेजी से आगे बढ़ रहा है, न ही सीबीआई जांच में कोई ठोस प्रगति हुई है। जनता और अंकिता के परिजन वीआईपी के नाम के खुलासे का इंतजार कर रहे हैं, जो अब तक सामने नहीं आया है।
महिला विधायक द्वारा सबूत मिटाने की घटनाएँ, रिजॉर्ट में आगजनी, और एसआईटी गठित होने के बावजूद अब तक कोई निष्कर्ष नहीं निकला है। अंकिता भंडारी के माता-पिता न्याय के लिए तरस रहे हैं, जबकि सरकार और प्रशासन की निष्क्रियता पर सवाल खड़े हो रहे हैं। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में भी धांधली और प्रक्रिया में लूप होल्स की खबरें सामने आई हैं, जिनमें महिला डॉक्टर का शामिल न होना भी शामिल है।
इस मामले में सरकार की कार्रवाई में ढिलाई, अपराधियों को राजनीतिक संरक्षण, और महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराधों ने महिला सुरक्षा और न्याय के दावों पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
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