ऋषिकेश मेयर शंभू पासवान के जाति प्रमाण पत्र विवाद पर उत्तराखंड बेरोजगार संघ का बयान
ऋषिकेश मेयर शंभू पासवान के जाति प्रमाण पत्र को लेकर उठे विवाद पर उत्तराखंड बेरोजगार संघ के प्रदेश प्रवक्ता सुरेश सिंह ने गहन अध्ययन कर मीडिया को अपना आधिकारिक बयान जारी किया है। सुरेश सिंह ने कहा कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ के निर्णयों, उच्च न्यायालयों के विभिन्न आदेशों और भारत सरकार द्वारा समय-समय पर जारी दिशा-निर्देशों को दरकिनार कर उत्तराखंड के मूल निवासी अनुसूचित जाति के अधिकारों का उल्लंघन करते हुए भाजपा ने बिहार मूल के व्यक्ति को अनुसूचित जाति प्रमाण पत्र जारी कर मेयर पद का टिकट दिया और चुनाव जितवाया।
सुरेश सिंह ने मुख्य सचिव सहित अन्य संबंधित उच्चाधिकारियों को पूर्ण तथ्यों से अवगत कराते हुए शंभू पासवान का अनुसूचित जाति प्रमाण पत्र तत्काल निरस्त करने तथा मेयर पद के लिए पुनः निर्वाचन कराए जाने की मांग की है। इस संबंध में सुरेश सिंह द्वारा मुख्य सचिव, सचिव समाज कल्याण और अपर सचिव कार्मिक एवं सतर्कता को ज्ञापन भी सौंपा गया है।
प्रवक्ता सुरेश सिंह ने जाति प्रमाणन में निवास के पहलू पर प्रकाश डालते हुए भारत सरकार के गृह मंत्रालय द्वारा वर्ष 1977 में जारी शासनादेश का हवाला दिया। उन्होंने कहा कि शासनादेश के अनुसार “निवास” शब्द का सामान्य या उदार अर्थ न लेकर उसे राष्ट्रपति आदेश (1950) की अधिसूचना की तिथि पर व्यक्ति के स्थायी निवास से जोड़ा जाना चाहिए।
सुरेश सिंह ने बताया कि यदि कोई व्यक्ति राष्ट्रपति आदेश की अधिसूचना के समय जीविकोपार्जन या शिक्षा के लिए अस्थायी रूप से अन्यत्र निवास कर रहा था, तो भी उसे मूल राज्य के अनुसार अनुसूचित जाति/जनजाति का लाभ मिल सकता है, किंतु अस्थायी निवास स्थान के आधार पर नहीं। उन्होंने स्पष्ट किया कि राष्ट्रपति आदेश के बाद जन्मे व्यक्तियों के लिए उनके माता-पिता का उस समय का स्थायी निवास महत्वपूर्ण माना जाएगा।
सुरेश सिंह ने आगे कहा कि दिनांक 09 अप्रैल 2025 एवं 11 अप्रैल 2025 को, देहरादून जिलाधिकारी द्वारा हाईकोर्ट के आदेश पर गठित जांच समिति के समक्ष शिकायतकर्ता दिनेश चन्द्र मास्टर का प्रतिनिधित्व करते हुए उन्होंने विस्तृत साक्ष्य प्रस्तुत किए हैं। इनमें माननीय सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के निर्णयों के अतिरिक्त भारत सरकार द्वारा समय-समय पर जारी अनेक शासनादेश भी सम्मिलित हैं।
उन्होंने संविधान पीठ के निर्णय मर्री चंद्रशेखर राव बनाम भारत सरकार, संतलाल बनाम महाराष्ट्र राज्य (2010) आदि का हवाला देते हुए कहा कि इन मामलों में भी स्पष्ट किया गया है कि जाति प्रमाण पत्र जारी करने में मूल राज्य और निवास स्थान की स्थिति का विशेष महत्व होता है।
उत्तराखंड बेरोजगार संघ ने मांग की है कि मामले की निष्पक्ष जांच कराते हुए शीघ्र उचित कार्रवाई सुनिश्चित की जाए।


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