“उत्तराखंड के गांवों में सबसे ज्यादा पलायन: आखिर क्या हैं इसके प्रमुख कारण?”
नीरज पाल
उत्तराखंड जिसे देवभूमि के नाम से जाना जाता है, यहां के पहाड़ी गांवों की सुंदरता और स्वाभाविक जीवनशैली कभी लोगों के दिलों में बसे होते थे। लेकिन आज, पलायन के कारण ये गांव खाली हो चुके हैं, और इन गांवों में बने मकान वीरान पड़े हैं। इन खाली पड़े घरों की हालत दिन-ब-दिन खराब होती जा रही है। जहां कभी जीवन का उल्लास था, वहां आज खंडहर जैसी स्थिति दिखती है। ये दृश्य देखना न केवल भावनात्मक रूप से पीड़ादायक है, बल्कि एक सांस्कृतिक धरोहर के धीरे-धीरे खत्म होने का संकेत भी है।
शहरों की चकाचौंध और आधुनिकता ने पहाड़ों की प्राकृतिक सुंदरता को निगल लिया है। बेहतर अवसरों और सुविधाओं की खोज में गांवों से पलायन कर शहरों की ओर जाने वाले लोगों ने अपने पुरखों के बनाए घरों को पीछे छोड़ दिया। वो घर, जो कभी हंसी-खुशी से भरे रहते थे, अब बेजान होकर टूटने की कगार पर हैं। पहले जो घर भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाओं का सामना कर सकते थे, वो आज इंसान की लापरवाही और समय की मार के कारण मिट्टी में मिल रहे हैं।
पहाड़ी इलाकों में बने पुराने घर अपनी मजबूती और निर्माण शैली के लिए जाने जाते थे। भले ही उन घरों में भूकंप के दौरान दरारें आ जाती थीं, लेकिन वो गिरते नहीं थे। इन घरों में किसी की जान का खतरा नहीं होता था। लेकिन आज की आधुनिक इमारतें थोड़ी सी भी प्राकृतिक विपदा में धराशायी हो जाती हैं।
हमारे पूर्वजों ने सीमित साधनों के बावजूद प्रकृति के साथ तालमेल बिठाते हुए अपने जीवन को सरल और सुखी ढंग से जिया। वो लोग अपने सीमित संसाधनों में संतुष्ट थे और उन्होंने कभी जीवन का उद्देश्य केवल भौतिक संपत्ति में नहीं देखा। उन्होंने जो भी निर्माण किया, वो पर्यावरण के साथ सामंजस्य स्थापित करके किया। उनके बनाए घरों में प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग हुआ, जो पर्यावरण को हानि नहीं पहुंचाता था। लेकिन आज के समय में लोग अपने जीवन का अधिकांश हिस्सा बड़ी-बड़ी इमारतें बनाने में खर्च कर देते हैं। ‘कोठी के ऊपर कोठी’ बनाने की इस होड़ में लोग अपनी जमीन और जड़ों से दूर होते जा रहे हैं।
उत्तराखंड के इन गांवों की दुर्दशा यह सवाल खड़ा करती है कि क्या हमने अपनी जड़ों को भूलकर सिर्फ आधुनिकता की दौड़ में शामिल होकर सब कुछ खो दिया है? क्या आज के मनुष्य के लिए विकास का मतलब केवल बड़ी इमारतें और संपत्ति का संचय ही रह गया है?
जरूरत है कि हम अपनी विरासत और प्रकृति की ओर फिर से लौटें। पहाड़ों की सुंदरता को बचाने के लिए हमें न केवल पलायन रोकना होगा, बल्कि अपने पुरखों की बनाई सांस्कृतिक धरोहर को भी संजो कर रखना होगा। उत्तराखंड के ये गांव सिर्फ घरों का संग्रह नहीं हैं, बल्कि ये हमारी संस्कृति, परंपरा, और पहचान का प्रतीक हैं।
उत्तराखंड के गांवों से हो रहे पलायन के प्रमुख कारण
1. रोजगार के अवसरों की कमी : पहाड़ी क्षेत्रों में रोजगार के सीमित अवसर लोगों को मजबूर कर रहे हैं कि वे अपने गांवों को छोड़कर शहरों की ओर रुख करें। खेती-बाड़ी जैसे पारंपरिक व्यवसाय अब पर्याप्त आजीविका प्रदान नहीं कर पाते हैं।
2. शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव : ग्रामीण क्षेत्रों में अच्छे स्कूलों और स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी भी पलायन का एक बड़ा कारण है। लोग अपने बच्चों की बेहतर शिक्षा और इलाज के लिए शहरों में बसने के लिए मजबूर हैं।
3. बुनियादी सुविधाओं की कमी : सड़कों, बिजली, पानी जैसी बुनियादी सुविधाओं का अभाव भी गांवों में रहने की मुश्किलें बढ़ा देता है। ग्रामीणों को आधुनिक जीवन की आवश्यक सुविधाओं की कमी के चलते शहरों की ओर आकर्षित होना पड़ता है।
4. आधुनिक जीवनशैली की चाहत : आज की युवा पीढ़ी में आधुनिक जीवनशैली की चाहत भी पलायन को बढ़ावा दे रही है। गांवों की अपेक्षाकृत सरल जीवनशैली की तुलना में शहरी जीवन में मिलने वाली सुविधाएं और अवसर युवा वर्ग को अपनी ओर खींचते हैं।
5. कृषि से होने वाली आय में गिरावट : जलवायु परिवर्तन और खेती के प्रति घटती रुचि के कारण कृषि से होने वाली आय में कमी आ रही है, जिससे ग्रामीण अपने परंपरागत व्यवसाय को छोड़ने के लिए मजबूर हो रहे हैं।


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