देहरादून /इंफो उत्तराखंड
पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत (Harish Rawat) ने एक बड़ा बयान दिया है, जिसमें उन्होंने लोकपाल व लोकायुक्त का मुद्दा उठाकर एक बार फिर सरकार (Sarkar) को घेरने की कोशिश की है। उन्होंने कहा कि आश्चर्य, जनक है कि आज भी कुछ पत्र और पत्रकार (Media) हैं, जो बुझता हुआ हुक्का गुड़गुड़ाने का शौक रखते हैं। लोकपाल तो 2014 में सत्ता परिवर्तन का टोटका था, जिस टोटके का भी अन्ना, इस्तेमाल कर सत्ता में आने वाले लोग उसको खुद ही एक अनचाही झंझट समझकर भुला चुके हैं।
हरीश रावत (Harish Rawat) ने कहा कि कभी मैंने संसदीय कार्य राज्यमंत्री के तौर पर कहा था कि “तृ मैं भी अन्ना, आओ मिल बैठकर चूसें गन्ना”, वह गन्ना लोकपाल ही था। मगर मैं भूल गया एक बार चूसा गया गन्ना, फिर नहीं चूसा जाता। 2014 में गन्ना चुस गया और अन्ना भी लोकपाल के गन्ने को भूल गये। 2016 में मैंने राज्य विधानसभा द्वारा संशोधित रूप में पारित कानून के तहत लोकायुक्त चयन की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने का हौसला किया।
हाईकोर्ट (High court) के दिशा निर्देश में दोनों कमेटियां, एक हाईकोर्ट के वरिष्ठ रिटायर्ड जज की अध्यक्षता में और दूसरी कमेटी मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के मार्ग निर्देशन में गठित हुई।
पहली कमेटी ने अपना दायित्व पूरा कर समय पर पत्रावली दूसरी कमेटी के सम्मुख प्रस्तुत कर दी। दूसरी कमेटी में राज्य के मुख्यमंत्री का मार्गदर्शन करने के लिए हाईकोर्ट (High court) के मुख्य न्यायाधीश के प्रतिनिधि के तौर पर वरिष्ठतम् न्यायधीश, प्रतिपक्ष के तत्कालीन नेता, एक वरिष्ठ मंत्री और विधानसभा के स्पीकर बैठे, सारी औपचारिकताओं को आगे बढ़ाया गया और औपचारिकताओं के आगे बढ़ने के बाद लोकपाल के प्रशासनिक विभाग द्वारा पत्रावली कमेटी के सम्मुख प्रस्तुत की गई।
और कमेटी ने सर्वसम्मत से न केवल लोकायुक्त का बल्कि लोकायुक्त बेंच का भी राज्यपाल के पास अनुमोदनार्थ फाइल भेज दी। राज्य की राजनीति में परिवर्तन लाने की कोशिश हुई और उस कोशिश के बाद महामहिम राज्यपाल के इंस्टिट्यूशन की राज्य में स्वायत्तता समाप्त हो गई और उसका पहला विक्टिम उत्तराखंड को मिलने जा रहा लोकायुक्त और लोकायुक्त की बेंच हुई।
कुछ मुझे आश्चर्य है जब नई विधानसभा में सत्तारूढ़ दल औपचारिकता पूरी करने के लिए ताकि विधिवत तरीके से लोकायुक्त की मांग को दफनाया जा सके, प्रस्ताव लेकर के आया तो 2016 के घटनाक्रम के पात्र भी इस बात को भूल गए कि राज्य विधिवत तरीके से लोकायुक्त का चयन कर राज्यपाल को पत्रावली भेज चुका है और पत्रावली के ऊपर राज्यपाल बैठे हुए हैं। ऐसा लगता है सब शीघ्रता में थे, क्योंकि मालूम था कि यदि विधेयक प्रवर समिति के पास जाएगा तो फिर वह अति प्रवर ही हो जाएगा और प्रबल भी हो जाएगा।
वह इतना प्रबल हुआ की 5 साल न राज्यपाल के पास लंबित बिल के विषय में कुछ सुनने को मिला और न प्रवर समिति के लंबित प्रस्ताव पर कुछ सुनने को मिला, तो इसलिए मैंने कहा कि उन लोगों को मैं फिर भी धन्यवाद देना चाहूंगा जो लोग लोकायुक्त के बुझे हुये हुक्के को भी गुड़गुड़ाने का शौक रख रहे हैं।
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